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Wednesday, April 7, 2010

बदलते रिश्ते





जिंदगी में कुछ रिश्ते
यूँ बन जाती है,
पास बुलाओ तो दूर
बहुत दूर निकल जाती है.

कुम्हला जाती तनिक ठोकड़ से
छुइ-मुई के पत्ते की तरह
जो साथ निभाना सीखा गई
और बनी जीने की वजह.

दिल के दर्द का ये आलम,
हँसती जवान चुप हो जाती,
खामोश निगाहों में देखो तो
बस एक नाम आजाती.

दिल में दफ़्न दर्द का दरिया
छलकता है आँसू बन कर
पल भर के साथ ने खुशियाँ इतनी दी
नही घटेगी आँसू वा उम्र रोने पर.

जमाने को दिखाते हैं
हम पे गम का कोई क़तरा नही
अपने में मशगूल हैं
किसी से कोई शिकवा नही.

पर रात की काली शाए में
जब हम अकेले होते हैं,
घड़ियाँ टिक-टिक बजती है
दिल की बेचैनी बढ़ती है.

खिड़की से उसके पैरों की आहट
जब दिल तक आती है,
लपक दरवाज़े पर यूँ बढ़ता मैं
देख हवा भी शर्माती है.

उन तारों को मैं गिना करता
कभी जिस पर नज़रें उसने फेरी थी,
उन हवाओं से जलता मैं
जिसने उसे छेड़ी थी.

सोचा करता उस पल मैं
जब वो साथ हमारे होती थी,
उजाले सी होती रातों को
जब चेहरे से हाथ उठाती थी.

आसमान था सूना दिखता,
पूनम का चाँद नदारत था,
उसके आने की आहट से
चाँद भी शर्मा छुप जाता था.

मुस्कुराहट उसकी फिजाओं मे,
यूँ दृश्य बिखेर जाती,
साहत्रों बूँदें मिल कर ज्यों
इंद्रधनुष उकेर जाती.

उसके यादों की खुशबू ,
साँसों को महकती है,
अचेत पड़े इस वदन को
बस वो ही तो महकती है.

हाथों की चंद लकीरों मे,
उसे अक्सर मैं ढूँढा करता हूँ,
कहीं स्वप्न में मिल जाए वो
ये सोच के सोया रहता हूँ.

दोस्त हमे समझाने आते उसे सोच
क्यों व्यर्थ समय गँवाते हो?
तब धीरे से कहता मैं
उस समय का ही क्या करना
जिस समय में वो ना हो........!!!!!!!!!!!

:-कन्हैया

3 comments:

  1. अच्छी प्रस्तुति। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. हिंदी में आपका लेखन सराहनीय है.... इसी तरह तबियत से लिखते रहिये.. धन्यवाद.

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