दीप-दीप से ज्योति छ्लकता,
घर-घर में फैली उजियारी;
तिल-तिल से है तेज फूटता,
पावन पर्व दीवाली आई.
यह चेतना की ज्वार बनी,
यह मुखमंडल की है लाली,
तमस-तोम को तिरोहित करने,
पावन पर्व दीवाली आई.
यह चरण-चिन्ह है विजय का
और उम्मीदों की है बाती,
धूमिल धरा उद्भासित करने,
पावन पर्व दीवाली आई.
यह समाधान है सघन रात की,
बन अंत अमा की आई,
उद्दाम लालसा जीवन का लेकर,
पावन पर्व दीवाली आई.
यह आलोक अन्वेषी मानव के,
गाथा है अन्वेषण की,
स्नेह सुधा से सिक्त वसुधा पे,
श्रिगार है दीप मालाओं की.
यह चाँद सितारों को शर्माती
जो चमक रही बल औरों के,
अपने उज्ज्वल ज्योति से ज्योतित करने,
आई है ये आतल पे.
आज भी खुशियाँ सहमती
उन लाखों परिवारों से,
जहाँ माटी के दिए नदारत
और चूल्हे ठंढी सालों से.
वो क्या जाने क्या होती है
होली और वैशाखी
सहम जहाँ से लौट आती है
खुशियों भरी दीवाली.
यह दीनता के दहन का दिन लाया,
यह वैभव की है निशानी,
अमीरी-गरिवी का भेद मिटाने
पावन पर्व दीवाली आई.
मैत्री-मम्त्व से सनी भारत भू पर
पर्वों की प्रीत निराली,
वन,उपवन,मन सुरभित करने
पवन पर्व दीवाली आई.
:-कन्हैया कुमार
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