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Thursday, April 15, 2010

संस्कृति आधार



है हृदय हिन्दी हिंद का,
इसमें हज़ारों राग बसी,
बिन साज़ो सज्जा के,
झंकृत होते मधुर तान यहीं.
लाखों को ले लपेटी
मेम की मोह ने,
वंध्या सी पड़ी अब
यह निज गेह में.

परदेशी स्वामी बन बैठा,
देशी करता गुलामी उसकी,
कहाँ से चली यह झोंका बोलो?
स्वाधीन राष्ट्रमें एकचलतीकिसकी?
बुद्धिजीवी ही हैं
इस शैतान की ज़ंज़ीर में,
अपनी अब तो गैर बन गई,
दिखावे की इस भीड़ में.

स्वतंत्रताकाबिगुलबजानेवालों पड़ही,
पहला ये आघात है,
कौन मुक्त कराएगा इसको
जो भाषा नही संस्कृति आधारहै!!!!
:-कन्हैया

Tuesday, April 13, 2010

हमने कसमें है खाई

जलियाँवाला बाग के शहीदों को याद करते हुए एक श्रधा-सुमन समर्पित .........................




धूल तेरे चरणों की हमने,
माथे अपने लगाई,
जननी तेरे चरणों की
हमने कसमें है खाई.


यह देश है ऋषियों के तर्पण की,
और धरा बलिदानी,
हंसते-हंसते फाँसी पर चढ़ने वालों की
गाथा बहुत पुरानी.
इस अभिनन्दनीय भूमि की गौरव गाथा
जाती नहीं भुलाई,
जननी तेरे चरणों की
हमने कसमें है खाई.


यह महासेतु है संस्कृति की,
क्षमा दया इसकी निशानी,
जर-चेतन जहाँ गाए हरदम
गीता वाली वाणी.
वंदनीय भूमि यह देती सबको
हंस-हंस आज दुहाई
जननी तेरे चरणों की
हमने कसमें है खाई.


यह सार है संसार का,
इसने मृत जग में प्राण दिया,
तमस-तोम में भ्रमित जगत को
इसने है त्राण दिया.
पिपाषीत जाग को इसने
स्नेह सलिल पिलाई,
जननी तेरे चरणों की
हमने कसमें है खाई.


माँ ! तेरे आँचल के क्षीर में,
किसने है जहर मिलाया?
किसकी काली कीर्ति पर,
मानवता शर्माया?
तेरी पीड़ा से हो आहत,
हमने आवाज़ लगाई,
जननी तेरे चरणों की
हमने कसमें है खाई.


लेकर दीपज्ञान का'
हम घर-घर ज्योति जलाएँगे,
अज्ञानता को खुद जल-जल हम,
धरा से दूर भगाएँगे.
वक़्त अब भुजा उठा कर सपथ लेने की आई.
जननी तेरे चरणों की
हमने कसमें है खाई.


इस तपो भूमि पर तपोनि:ष्ठ ने
जो तेज है फैलाई.
उसी देश की माटी पे
आज काल ने सेंध लगाई.
नफ़रत ज्वाला में जलता हृदय,
देता हमें दिखाई,
जननी तेरे चरणों की
हमने कसमें है खाई.


हे अभिनन्दिनी ! तेरी रक्षा में,
अपना सर्वस्व कुर्वान करेंगे,
मृत सैय्या पर सो कर भी
मुक्त कंठ से तेरा गुणगान करेंगे.
यह ओजस्वी सपथ कभी
जाए नहीं भुलाई,
जननी तेरे चरणों की
हमने कसमें है खाई.



:-कन्हैया

Wednesday, April 7, 2010

बदलते रिश्ते





जिंदगी में कुछ रिश्ते
यूँ बन जाती है,
पास बुलाओ तो दूर
बहुत दूर निकल जाती है.

कुम्हला जाती तनिक ठोकड़ से
छुइ-मुई के पत्ते की तरह
जो साथ निभाना सीखा गई
और बनी जीने की वजह.

दिल के दर्द का ये आलम,
हँसती जवान चुप हो जाती,
खामोश निगाहों में देखो तो
बस एक नाम आजाती.

दिल में दफ़्न दर्द का दरिया
छलकता है आँसू बन कर
पल भर के साथ ने खुशियाँ इतनी दी
नही घटेगी आँसू वा उम्र रोने पर.

जमाने को दिखाते हैं
हम पे गम का कोई क़तरा नही
अपने में मशगूल हैं
किसी से कोई शिकवा नही.

पर रात की काली शाए में
जब हम अकेले होते हैं,
घड़ियाँ टिक-टिक बजती है
दिल की बेचैनी बढ़ती है.

खिड़की से उसके पैरों की आहट
जब दिल तक आती है,
लपक दरवाज़े पर यूँ बढ़ता मैं
देख हवा भी शर्माती है.

उन तारों को मैं गिना करता
कभी जिस पर नज़रें उसने फेरी थी,
उन हवाओं से जलता मैं
जिसने उसे छेड़ी थी.

सोचा करता उस पल मैं
जब वो साथ हमारे होती थी,
उजाले सी होती रातों को
जब चेहरे से हाथ उठाती थी.

आसमान था सूना दिखता,
पूनम का चाँद नदारत था,
उसके आने की आहट से
चाँद भी शर्मा छुप जाता था.

मुस्कुराहट उसकी फिजाओं मे,
यूँ दृश्य बिखेर जाती,
साहत्रों बूँदें मिल कर ज्यों
इंद्रधनुष उकेर जाती.

उसके यादों की खुशबू ,
साँसों को महकती है,
अचेत पड़े इस वदन को
बस वो ही तो महकती है.

हाथों की चंद लकीरों मे,
उसे अक्सर मैं ढूँढा करता हूँ,
कहीं स्वप्न में मिल जाए वो
ये सोच के सोया रहता हूँ.

दोस्त हमे समझाने आते उसे सोच
क्यों व्यर्थ समय गँवाते हो?
तब धीरे से कहता मैं
उस समय का ही क्या करना
जिस समय में वो ना हो........!!!!!!!!!!!

:-कन्हैया