कूद पड़ो इस महासमर में
ज़ख्मी जज्बातों को दो चिंगारी
अगर थम गए अब कदम तुम्हारे
लूटते रहेंगे ये भ्रष्टाचारी.
शिथिल चेतना में जोश भरो
अब त्याग मांगती धरती प्यारी,
धीमें स्वर में ना सुलझेगी
गोली खाने की कर लो तैयारी.
इस आज़ादी के हवन कुंड में
ज़रूरत नही घृत,तेल और बाती
समय,श्रम और शोणित अर्पित कर दो
रण-बांकुरे करके अपनी चौड़ी छाती
दशकों की अर्ध आज़ादी मे
भारत का अस्थि मात्रा बचा है.
हैवानों ने शोणित माँस नोच नोच कर
देश में बस द्वेष भरा है.
ये जो चरण उठे हैं तेरे,
स्वर्ण युग अब दस्तक देगा;
अडिग हो बढ़ते जाओ ,
भ्रष्टाचारी नतमस्तक होगा. !!!!!!!
:- कन्हैया