कितना सुखद होता वह एहसास, जब हम होते पास-पास,
धीरे से तुम लोरियाँ गाती, थपकीयों से मुझे सुलाती.
मेरे नर्म हाथों के स्पर्श से,
तुम पल भर सो जाती,
मेरे तनिक पीड़ा से
तुम जोड़ों से रो जाती.
माँ!उसदिनतुमबहुत खुशदिखरहीथी, पापा की भी हँसी फूट रही थी, हम तीनों उस दिन कहाँ चले थे? न जाने शोर से हम कहाँ मिले थे.
मैं ने भी सोचा,
खुशियों का आलम कोईआयाहोगा, मेरे लिए ही
खिलौना कोई लाया होगा .
खिलौने की आवाज़
मेरे ही पास आ रही थी,
मैं भी खुशी से आह्लादित होकर मन ही मन कुछ गा रही थी.
अचानक वह आवाज़
असहनीय हो गई,
तुम्हारे भीतर रहकर भी
स्थिति मेरी दयनीय हो गई.
माँ-माँ कह कर
मैं चीख रही थी,
हसरत भरी निगाहों से
मैं तुमको देख रही थी.
इतने में इस नन्ही जान को,
माँ! तुमने ही मुझ से छीन लिया,
मौन हो गई मैं अंधेर रात सी,
जीनेकीचाहत मनमेंसमाकररहगया.
माँ !तुम तो कहती थी
घर में मेरे छिड़ाग आ रहा है, हिम बूँदों से सनी कोई शीतल बयार आ रही है,
उजाड़ बगीचे में लेकर
कोई बहार आ रहा है.
फिर तुम क्यों मजबूर हो गई? पलमेंआँचल छुड़ा करक्योदूरहोगई? क्यों न सहमी तेरी ममता ? अपनी संतान पर ये बर्बरता?
माँ ! मैं तुम्हारी ही बेटी हूँ , तुम्हारे ज़िगर का मैं हूँ टुकड़ा, तुम्हें नही सुनाउंगी तो किसे सुनाउंगी अपनी दुखड़ा?
माँ! मैं ही तो थी अंश तुम्हारी, भविष्य की थी वंश तुम्हारी,
कोख से तुम्हारे बाहर आकर
मैं ही बढ़ाती यश तुम्हारी.
मैंनेतो दुनियाँ भी अभी नहीं देखा,
फिर कब मैंने अपराध किया?
क्यों ये सज़ा मिली है हमको?
कौन सा मैं ने पाप किया ?
इस दुनियाँ से व्यथित,
मैं अपनी ग़लती खोज रही थी; क्या यही अपराध थी मेरी
बेटी बन मैं अवतरित हुई थी?
:-कन्हैया
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteBADHAI AAP KO