बदला फिर एक पृष्ठ जीवन का,
जगी आश नूतन मिलन का, 
सहमी-सहमी सी रात दब रही अतीत के पन्नों मे,
शुखद प्रभात की आश छिपी है मन-मन में.
नव प्रभात की आश में,
विरहित मन में हर्ष है;
आह्लादित हो रहा दिल
आरहा नव वर्ष है.
उत्थान के पथ पे हो कृत संकल्प,
 आयाम नया बनाएँगे; 
अपना-पराया का कारा तोड़ 
कदम से कदम मिलाएँगे.
बदलेंगे निष्ठुर नियति को, 
गरल को सुधा बनाएँगे;
तोड़ दुर्ग बाधाओं का 
विजय ध्वज लहराएँगे.
:-कन्हैया
 
   
 
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